राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख – Major Inscriptions Located in Rajasthan

राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख: शिलालेख का अर्थ है पत्थर पर लिखा हुआ (अंग्रेजी: पेट्रोग्राफ)। जब कोई लिखित रचना पत्थरों पर या गुफाओं की पत्थर की दीवारों पर की जाती है, तो उसे शिलालेख कहा जाता है और पत्थरों पर लिखने की कला को शिलालेख कहा जाता है। शिला का अर्थ है पत्थर या चट्टान; और जब लेख शब्द इसके साथ जुड़ जाता है, तो एक शिलालेख बनता है।

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1 राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख

राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख

Major Inscriptions Located in Rajasthan: In earlier times, humans used to talk with signs. Later, when he needed to write for communication, he invented a script. From that concocted script, he used to write his thoughts on the rocks. Writing articles on those rocks was considered very important to preserve history for the future.

Inscriptions were written in ancient times when paper was not invented in the world. After the invention of paper, the inscription lost its recognition.

But at present, we can find many inscriptions written. Which would have been written earlier by the king of some state. Among the ancient inscriptions, the inscriptions of Emperor Ashoka have become the most famous. There was no paper at the time of Emperor Ashoka, so he got some things engraved on the inscriptions to keep them for future history.

राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख - Major Inscriptions Located in Rajasthan

राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख – Major Inscriptions Located in Rajasthan

1. बिजोलिया शिलालेख (1170 ई.)

  • इसका प्रशस्ति कार गुण भद्र था
  • इस लेख में उस समय  के क्षेत्रों के प्राचीन नाम भी मिलते हैं- जैसे एक जबालीपुर(जालौर), नड्डूल (नाडोल), शाकंभरी(सांभर), दिल्लिका (दिल्ली), श्रीमाल(भीनमाल), मंडलकर (मांडलगढ़), विंध्यवल्ली(बिजोलिया), नागहृद(नागदा) आदि।
  • बिजोलिया के आसपास के पठारी भाग को उत्तमाद्री के नाम से संबोधित किया गया  जिसे वर्तमान में उपरमाल के नाम से जाना जाता है ।
  • इस अभिलेख में सांभर एवं अजमेर के चौहानों का वर्णन है
  • बिजोलिया के पाश्वर्नाथ जैन मंदिर के पास एक चट्टान पर उत्कीर्ण  1170 ई. के इस शिलालेख को जैन श्रावक लोलाक द्वारा मंदिर के निर्माण की स्मृति में बनवाया गया था
  • गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 12 वीं सदी के जनजीवन ,धार्मिक अवस्था और भोगोलिक और राजनीति अवस्था जानने हेतु यह लेख बड़े महत्व का है।
  • यह अभिलेख संस्कृत भाषा में है और इसमें 13 पद्य है यह लेख दिगंबर लेख है।
  • इस शिलालेख से कुटीला नदी के पास अनेक शैव व जैन तीर्थ स्थलों का पता चलता है ।
  • इस लेख में उस समय दिए गए भूमि अनुदान का वर्णन डोहली नाम से किया गया है ।.
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2. बड़ली का शिलालेख (443 ईसवी)

  • यह अशोक से भी पहले ब्राह्मी लिपि का है।
  • अजमेर जिले के बड़ली गांव में 443 ईसवी पूर्व का शिलालेख वीर सम्वत 84 और विक्रम सम्वत 368 का है
  • यह अभिलेख गौरीशंकर हीराचंद ओझा को भिलोत माता के मंदिर में मिला था
  • यह राजस्थान का सबसे प्राचीन अभिलेख है जो वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है
  • राजस्थान तथा ब्राह्मी लिपि का सबसे प्राचीन शिलालेख है

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3. रणकपुर प्रशस्ति ( 1439 ई. )

  • इसमें मेवाड़ के राजवंश एवं धरणक सेठ के वंश का वर्णन मिलता है
  • इसका प्रशस्तिकार देपाक था
  • इसमें महाराणा कुंभा की वीजीयो एवं उपाधियों का वर्णन है
  • इसमें बप्पा एवं कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया है
  • इस लेख में बप्पा से कुंभा तक की वंशावली दी है। जिसमें बप्पा को गुहिल का पिता माना गया है।
  • इसमें गुहीलो को बप्पा रावल का पुत्र बताया है
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4. मानमोरी अभिलेख (713 ई.)

  • चित्तौड़ की प्राचीन स्थिति एवं मोरी वंश के इतिहास के लिए यह अभिलेख उपयोगी है।
  • यह लेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट से कर्नल टॉड को मिला था।
  • इसमे अम्रत मथन का उल्लेख मिलता हैं
  • इस शिलालेख के अत्यधिक भारी होने के कारण कर्नल जेम्स टॉड ने इसे इग्लैंड ले जाने की अपेक्षा समुन्द्र में फेकना उचित समझा !
  • इस लेख से यह भी ज्ञात होता है कि धार्मिक भावना से अनुप्राणित होकर मानसरोवर झील का निर्माण करवाया गया था।

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5. घोसुंडी शिलालेख (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व)

  • इसमें एक बड़ा खण्ड उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है।
  • यह लेख कई शिलाखण्डों में टूटा हुआ है। इसके कुछ टुकड़े ही उपलब्ध हो सके हैं।
  • इस लेख में प्रयुक्त की गई भाषा संस्कृत और लिपि ब्राह्मी है।
  • घोसुंडी का शिलालेख नगरी चित्तौड़ के निकट  घोसुण्डी गांव में प्राप्त हुआ था
  • घोसुंडी का शिलालेख सर्वप्रथम डॉक्टर डी आर भंडारकर द्वारा पढ़ा गया
  • इस लेख का महत्त्व द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में भागवत धर्म का प्रचार, संकर्शण तथा वासुदेव की मान्यता और अश्वमेघ यज्ञ के प्रचलन आदि में है।
  • इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि उस समय तक राजस्थान में भागवत धर्म लोकप्रिय हो चुका था इसमें भागवत की पूजा के निमित्त शिला प्राकार बनाए जाने का वर्णन है
  • यह राजस्थान में वैष्णव या भागवत संप्रदाय से संबंधित सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख है
  • इस लेख में संकर्षण और वासुदेव के पूजागृह के चारों ओर पत्थर की चारदीवारी बनाने और गजवंश के सर्वतात द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने का उल्लेख है।
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6. प्रतापगढ़ अभिलेख (946 ई.)

  • इस अभिलेख मे गुर्जर -प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है।
  • प्राचीन भू-अभिलेख दस्तावेजों के आधार पर प्रतापगढ़ जिले में खेती की भूमि किस्में ‘सिंचित’, ‘असिंचित-काली-भूमि, ‘धामनी’, ‘कंकरोट’, ‘अडान’ और ‘बंजर-काली’ थीं।
  • तत्कालीन समाज कृषि, समाज एवं धर्म की जानकारी मिलती है।

7. कुंभलगढ़ शिलालेख -1460 ( राजसमंद )

  • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति या कुम्भलगड़ शिलालेख राजस्थान के राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित कुम्भश्याम मंदिर में स्थित है।
  • यह शिलालेख कुम्भलगढ़ दुर्ग में सिथत कुंभश्याम के मंदिर ( इसे वर्तमान में मामदेव का मन्दिर कहते हैं) में मिला है,
  • इसमें कुल 5 शिलालेखों का वर्णन मिलता है
  • इस शिलालेख में 2709 श्लोक हैं।
  • इसकी निम्न विशेषतायें हैं-
    • यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली रूप से जानने का महत्वपूर्ण साधन हैं!
    • यह राजस्थान का एकमात्र अभिलेख हैं जो महाराणा कुंभा के लेखन पर प्रकाश डालता हैं!
    • इस लेख में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया हैं!
    • इसमे गुहिल वंश का वर्णन हैं!
  • दासता, आश्रम व्यवस्था, यज्ञ, तपस्या, शिक्षा आदि अनेक विषयों का उल्लेख इस शिलालेख में मिलता है।
  • यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को विशुद्ध रूप से जानने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है।
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8. विराट नगर अभिलेख ( 1840 ई. जयपुर)

  • यह शिलालेख पाली व बाह्मी लिपि में लिखा हुआ था
  • अशोक के अभिलेख मौर्य सम्राट अशोक के 2 अभिलेख विराट की पहाड़ी पर मिले थे
    • भाब्रू अभिलेख
    • बैराठ शिलालेख
  • जयपुर में सिथत विराट नगर की बीजक पहाड़ी पर यह शिलालेख उत्कीर्ण हैं
  • इस अभिलेख में सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म एवं संघ में आस्था प्रकट की गई है
  • इस अभिलेख से अशोक के बुद्ध धर्म का अनुयायी होना सिद्ध होता है
  • इस शिलालेख को कालांतर में 1840 ई. में बिर्टिश सेनादिकारी कैप्टन बर्ट दारा कटवा कर कलकत्ता के सग्रहालय में रखवा दिया गया
  • चीनी यात्री हेनसांग ने भी इस स्थाल का वर्णन किया है!
  • इसे मौर्य सम्राट अशोक ने स्वयं उत्कीर्ण करवाया था

9. कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति ( 1460 में )

कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति (अंग्रेज़ी: Kirti Stambha Inscriptions) का प्रशस्तिकार महेश भट्ट था। कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति में कुंभा की उपलब्धियों एवं उसके द्वारा रचित ग्रंथों का वर्णन मिलता है। यह राणा कुंभा की प्रशस्ति है। इसमें बप्पा से लेकर राणा कुंभा तक की वंशावली का वर्णन है

10. साडेश्वर अभिलेख

इस अभिलेख से वराह मंदिर की व्यवस्था स्थानीय व्यापार कर शासकीय पदाधिकारियों आदि के विषय में पता चलता है

  • इस प्रशस्ति से वराह मंदिर की व्यवस्था, स्थानीय व्यापार, कर, शासकीय पदाधिकारियों आदि के विषय में पता चलता है।
  • यह प्रशस्ति उदयपुर के शमशान में स्थित सारणेश्वर महादेव के मंदिर में स्थित सभामंडप मे मिली थी।
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11. फारसी शिलालेख (1200 ई.)

  • यह लेख 1200 ई. का है और इसमें उन व्यक्तियों के नामों का उल्लेख है जिनके निर्देशन में संस्कृत पाठशाला तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया गया।
  • चित्तौड़ की गैबी पीर की दरगाह से 1325 ई. का फारसी लेख मिला है जिससे ज्ञात होता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया था।
  • ये लेख मस्जिदों, दरगाहों, कब्रों, सरायों, तालाबों के घाटों, पत्थर आदि पर उत्कीर्ण करके लगाए गए थे।
  • भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना के पश्चात् फारसी भाषा के लेख भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
  • इनके माध्यम से हम राजपूत शासकों और दिल्ली के सुलतान तथा मुगल शासकों के मध्य लड़े गए युद्धों, राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों पर समय-समय पर होने वाले मुस्लिम आक्रमण, राजनीतिक संबंधों आदि का मूल्यांकन कर सकते हैं।
  • इस प्रकार के लेख सांभर, नागौर, मेड़ता, जालौर, सांचोर, जयपुर, अलवर, टोंक, कोटा आदि क्षेत्रों में अधिक पाए गए हैं।
  • राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास के निर्माण में इन लेखों से महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है।
  • फारसी भाषा में लिखा सबसे पुराना लेख अजमेर के ढ़ाई दिन के झोंपड़े के गुम्बज की दीवार के पीछे लगा हुआ मिला है।
  • पुष्कर के जहाँगीर महल के लेख (1615 ई.) से राणा अमरसिंह पर जहाँगीर की विजय की जानकारी मिलती है। इस घटना की पुष्टि 1637 ई. के शाहजहानी मस्जिद, अजमेर के लेख से भी होती है।
  • जालौर और नागौर से जो फारसी लेख में मिले हैं, उनसे इस क्षेत्र पर लम्बे समय तक मुस्लिम प्रभुत्व की जानकारी मिलती है।

12. समिधेश्वर मंदिर का शिलालेख ( 1485 ई. )

  • समिधेश्वर मंदिर का शिलालेख (अंग्रेज़ी: Samadhisvar Temple Inscriptions) चित्तौड़, राजस्थान में है
  • रचना- एकनाथ ने , सूत्रधार-वसा
  • इसमें लेख को शिल्पकार वीसल ने लिखा।
  • इसमें मोकल द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है।
  • इस लेख में यह भी लिखा मिलता है कि महाराजा लक्ष्मण सिंह ने झोटिंग भट्ट जैसे विद्वानों को आश्रय दिया था।
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13. कुमारपाल अभिलेख 1161ई.(1218 वि.स.)

  • इसमें चालुक्य वंश का यशोगान किया गया है। इसके अनन्तर मूलराज और सिद्धराज का वर्णन आता है।
  • इस अभिलेख से आबू के परमारों की वंशावली प्रस्तुत की गई है
  • कुमारपाल के वर्णन में इसमें शाकंभरी विजय का उल्लेख आता है।
  • यह अभिलेख कुमारपाल सोलंकी के समय का चित्तौड़ के समिधेश्वर के मंदिर में लगा हुआ है।

14. रसिया की छत्री का शिलालेख ( 1274 ई. )

  • इस शिलालेख के कुछ अंश 13 सदी के जन जीवन पर प्रकाश डालते है।
  • इस शिलालेख से आदिवासियों के आभूषण वैदिक यज्ञ परंपरा और शिक्षा के स्तर की समुचित जानकारी का वर्णन मिलता है।
  • इस शिलालेख की एक शिला बची है। जो चित्तौड़ के पीछे के द्वार पर लगी हुई है।
  • इसमें बप्पा से नरवर्मा तक। गुहिल वंशीय मेवाड़ शासकों की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है।
  • नागदा और देलवाड़ा के गांवों का वर्णन मिलता है।
  • दक्षिणी पश्चिमी राजस्थान के पहाड़ी भाग की वनस्पति का चित्रण

15. चीरवे का शिलालेख ( 1273 ई. )

रचयिता- रत्नप्रभुसूरी + पार्श्वचन्द्र, उत्कीर्णकर्त्ता– देल्हण

  • चीरवा गांव उदयपुर से 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
  • चीरवे शिलालेख के समय मेवाड़ का शासक समर सिंह था।
  • एक मंदिर की बाहरी दीवार पर यह लेख लगा हुआ।
  • इस लेख में मेवाड़ी गोचर भूमि, सती प्रथा, शैव धर्म आदि पर प्रकाश पड़ता है।
  • चीरवे शिलालेख में गुहिल वंशीय, बप्पा, पद्मसिंह, जैत्रसिंह, तेजसिहं और समर सिंह का वर्णन मिलता है।
  • चीरवे शिलालेख में संस्कृत में 51 श्लोकों का वर्णन मिलता है।
  • चीरवे शिलालेख में चीरवा गांव की स्थिति, विष्णु मंदिर की स्थापना, शिव मंदिर के लिए खेतों का अनुदान आदि विषयों का समावेश है।
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16. चित्तौड़ के पार्श्वनाथ के मंदिर का लेख (1278 ई. )

इस लेख से शासन व्यवस्था,धर्म व्यवस्था तथा धार्मिक सहिष्णुता के बारें में जानकारी मिलती हैं।

  • 52 जिनालय युक्त इस मन्दिर में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 31 इंच की श्याम वर्ण पद्मासनस्थ मूर्ति विराजमान है
  • जिसे भर्तृपुरीय आचार्य के उपदेश से बनवाया।
  • तेज सिंह की रानी जयतल्ल देवी के द्वारा एक पार्श्वनाथ के मंदिर बनाने का उल्लेख मिलता है।

17. गंभीरी नदी के पुल का लेख

यह लेख महाराणाओं की धर्म सहिष्णुता नीति तथा मेवाड़ के आर्थिक स्थिति पर अच्छा प्रकाश डालता है। इसमें समर सिंह तथा उनकी माता जयतल्ल देवी का वर्णन मिलता है। यह लेख किसी स्थान से लाकर अलाउद्दीन खिलजी के समय गंभीरी नदी के पुल के 10 वी सीढ़ियों पर लगा दिया गया।

18. सारणेश्वर प्रशस्ति (953 ई.)

उदयपुर के श्मशान के सारणेश्वर नामक शिवालय पर स्थित है इस प्रशस्ति से वराह मंदिर की व्यवस्था, स्थानीय व्यापार, कर, शासकीय पदाधिकारियों आदि के विषय में पता चलता है। गोपीनाथ शर्मा की मान्यता है कि मूलतः यह प्रशस्ति उदयपुर के आहड़ गाँव के किसी वराह मंदिर में लगी होगी। बाद में इसे वहाँ से हटाकर वर्तमान सारणेश्वर मंदिर के निर्माण के समय में सभा मंडप के छबने के काम में ले ली हो। आप ejobmitra में पढ़ रहे है “राजस्थान स्थित प्रमुख शिलालेख” ।

19. श्रृंगी ऋषि का शिलालेख ( 1428 ई. )

सूत्रधार– पन्ना

  • इस लेख की रचना कविराज वाणी विलास योगेश्वर ने की।
  • इस लेख में लक्ष्मण सिंह और क्षेत्र सिंह की त्रिस्तरीय यात्रा का वर्णन मिलता है। जहां उन्होंने दान में विपुल धनराशि दी और गया में मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • यह लेख खण्डित दशा में है। जिसका बड़ा टुकड़ा खो गया।
  • हम्मीर का भीलों के साथ भी सफल युद्ध होने का उल्लेख मिलता।
  • हमीर के संबंध में इसमें लिखा है कि उसने जिलवड़े को छीना और पालनपुर को जलाया।

20. देलवाड़ा का शिलालेख ( 1334ई. सिरोही )

  • इस शिलालेख में कुल 18 पंक्तियां हैं। जिसमें आरंभ की 8 पंक्तियां संस्कृत में और शेष 10 पंक्तियां मेवाड़ी भाषा में।
  • इस लेख में धार्मिक आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।
  • मेवाड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है जो उसमें की बोलचाल भाषा थी।
  • टंक नाम की मुद्रा के प्रचलन का उल्लेख मिलता है।
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21. आबू का लेख ( 1342 ई. )

लेख श्लोक- 62, रचना- वेद शर्मा

  • इस शिलालेख से लेखक का नाम शुभ चंद्र है।
  • इस लेख में आबू की वनस्पति तथा ध्यान,ज्ञान, यज्ञ आदि से संबंधित प्रचलित मान्यताओं का वर्णन मिलता है।
  • बप्पा से लेकर समर सिंह तक के मेवाड़ शासकों का वर्णन,
  • शिल्पी सूत्रधार का नाम कर्मसिंह मिलता है

22. रायसिंह की प्रशस्ति ( 1593 में )

  • रायसिंह की प्रशस्ति राजस्थान में बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग के दरवाजे पर लिखी है।
  • रचयिता- जैन मुनि जइता/जैता(क्षेमरत्न कि शिष्य)
  • इस लेख में बीका से रायसिंह तक के बीकानेर के शासकों की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है।
  • 60 वीं पंक्ति में रायसिंह के कार्यों का उल्लेख आरंभ होता है। जिनमें का काबुलियों, सिंधियों और कच्छियों पर विजय मुख्य हैं।

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अभिलेख स्तंभलेख और शिलालेख क्या है,इनमे क्या अंतर है?

स्तंभ लेख वे लेख जो खुले स्थान पर पत्थर पर उकेरे गए थे। शिला का अर्थ है एक ब्लैकबोर्ड के आकार का एक प्रकार का वर्ग, जिस पर हम आज भी लिखते हैं, लेकिन उन लेखों को विचारों और विचारधारा को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए लिखा गया।

Source: https://m.bharatdiscovery.org/

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